देहरादून-: शहर को जाम मुक्त व व्यवस्थित बनाने को दून यातायात पुलिस से लेकर राजधानी होने के मद्देनज़र मुख्यालय स्तर पर भी दून के यातायात में सुधार लाने की दिशा में भरसक प्रयास किये जाते है। इसी फेहरियत में दून यातायात पुलिस का साथ देने को यातायात, थाना -चौकी पुलिस से लेकर थर्ड ऑय तक को " इंटेलीजेंट'' हैंड बनाकर ऊपरी तौर से शहर के यातायात को नियंत्रित रखने के तरीकों पर काम किया जा रहा है। तो वहीं हाल ही में पुलिस कप्तान अजय सिंह द्वारा शहरवासियों को यातायात का पाठ पढ़ाने को शहर भर में चेकिंग व चालान अभियान बुनियादी स्तर से शुरू हो गया है। दून को सुधारने की दिशा में प्रयास सराहनीय है किंतु जरूरत है कि ट्रैफिक सिग्नल पर खड़े वाहनों में भी ट्रैफिक रूल्स के प्रति "सेंस ऑफ अवेयरनेस" डाला जाया। सिग्नल ऑन होते ही वाहन सिग्नल पर रुकते जरूर है किंतु कहाँ ज़ेबरा क्रासिंग, कहाँ चौराहे की सीमा शुरू होती है उसका ध्यान शायद ही किसी वाहन को होता होगा।खासतौर पर दोपहिया वाहनो में सिग्नल खुलते ही सबसे पहले जाने की होड़ इस कदर है कि ज़ेबरा क्रासिंग से पांच-छह कदम आगे खड़े होना ही मुनासिब समझते है,उसके बाद चाहे सामने या अगल बगल के सिग्नल वाले अपनी बारी खुलने पर उस वाहन के चलते अपने आपको खुद ही बचाते हुए अपने गंतव्य को निकले पर मजाल कोई अपनी गलती मान अपनी गाड़ी पीछे कर ले।
देखा जाए तो राजधानी में ज़ेबरा क्रासिंग के शायद ही किसी को मायने पता होंगे और हम में से शायद किसी ने ही किसी को ज़ेबरा क्रोसिंग की मदद से रास्ता पार करते हुए देखा होगा। आधे मिट चुके है(जिन्हें दोबारा जीवित/ परिदृष्टित करने को पेंट किया जा रहा है) और जो बचे हुए है उनपर वाहन खुद दावेदारी से खड़े रहते है कि पैदल चलने वाला गाड़ियों के बीच से खुद ही बच बचाकर रोड क्रॉस करने को मजबूर है। यातायात पुलिस मौके पर मौजूद है तो कार्यवाही होगी,नही है तो सिग्नल खुलते ही वाहन निकल ही जायेंगे!
समस्या यह भी है कि एक व्यक्ति भी अगर जेबरा क्रासिंग से पहले अपनी गाड़ी रोक ले तो पीछे से हॉर्न मार मारकर खड़े वाहन उस आदमी को भी ज़ेबरा क्रोसिंग से आगे खिसका कर ले जा लेते है।
थर्ड ऑय का खौफ शहरवासियों में तभी तक है जब तक उनके खुद के घरों में चालान पर्ची न पहुँचे बाकि खुद से 'सभ्य' नगरवासी बनने में सभी को परहेज है। सुबह आफिस जाने में देरी से लेकर शाम को घर आने में जगह-जगह चौराहों में भारी जाम, किसी ने आड़ी-तिरछी गाड़ी लगा दी तो खुद से गालियां जरूर दे देंगे किन्तु सड़को में अपनी स्टॉप लाईन से 5 से 6 कदम आगे खिसके वाहनो को देख खुद में सुधार की गुंजाइश तलाश नही करते। शहर के बढ़ते जाम की निंदा करने को हर कोई तैयार है व शहर को 'अब दून पहले जैसा नही रहा' कहकर ढेरो बुराई कर देंगे किन्तु शहर की इस हालत के पीछे जिम्मेदार कौन, को ढूंढने की जहमत नही उठाते। और जिस चौराहों पर सिग्नल या पुलिस कर्मी न हो तो पहले मैं पहले मैं करते करते सारे वाहन आगे आगे खिसक बीच सड़क पर पहुँच जाते है नतीजन जाम और पीछे खड़े वाहनो के लिए भी असमंजस की स्थिति वह अलग।
दून पुलिस शहरवासियों को यातायात नियमो का पाठ पढ़ाने को हर बार नए तरीके लांच तो कर रही है किंतु जरूरत है कि शहरवासियों में नियमो को लेकर "सेंस ऑफ अवेयरनेस" सबसे पहले हो वह जरूरी है।