देहरादून-: राजधानी देहरादून की कई प्रमुख नदियों व वन संपदा के दोहन के खिलाफ कई सामाजिक संस्था मुखर है। जिसमे उनके द्वारा सोंग नदी को बचाने के लिए आगे आया जा रहा है,जिसमे आज रविवार को एसएफआई,सीएफजी सहित कई सामाजिक संस्था व आम जनता द्वारा सोंग नदी को बचाने को नालापानी जल स्त्रोत से खलंगा चन्द्राणी देवी तक यात्रा की। एसएफआई के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा सरकार को प्रदेश के वनों को बचाने को ग्रीन इकॉनमी पालिसी लागू करने को कहा।
आज रविवार को लगातार तीसरे हफ्ते खलंगा में विभिन्न जनसंगठनों,एवं सामाजिक संगठनों द्वारा खलंगा वन, सोंग नदी एवं अन्य जगहों पर जल,जंगल व ज़मीन के सिकुड़न/हानि को रोकने के लिए जन सभा का आयोजन किया गया।
जनसभा के दौरान सभी के द्वारा नालापानी जल स्त्रोत पर एकत्र जल ग्रहण किया और स्त्रोत की उपयोगिता पर सूक्ष्म चर्चा के पश्चात सभी लोगों ने स्त्रोत से खलंगा चन्द्राणी देवी तक यात्रा की। चन्द्राणी देवी स्थल पर सभी के द्वारा सोंग नदी को बचाने को चर्चा की गई।
सभा का उद्धघाटन करते हुए एसएफआई के प्रदेश अध्यक्ष नितिन मलेठा ने कहा सरकार को ग्रीन इकोनॉमिक पॉलिसी लागू करनी चाहिए। वनों को हर कीमत पर बचाना चाहिए। खलंगा बचाने के आंदोलन को सोंग नदी को बचाने और उत्तराखंड के तत्काल पर्यावरण संकट के निवारण की ओर ले जाना अत्यंत आवश्यक है। सी. एफ. जी. डी. की इरा चौहान ने कहा कि हमें स्थानीय निवासियों को साथ लेते हुए बड़ी संख्या में में पर्यावरण के आंदोलनों में शामिल होना होगा।
अनूप नौटियाल द्वारा दुष्यंत कुमार की कविता पाठ किया गया और आंदोलन को राजनैतिक रूप से भी मजबूत करने को कहा।
दून पीपल्स प्रोग्रेसिव क्लब के संयोजक पियूष शर्मा ने कहा कि उत्तराखंड के वन संसाधनों की एवज में उत्तराखंड राज्य केंद्र सरकर द्वारा ग्रीन बोनस दिया जाना चाहिए। अगर हमारा वन क्षेत्र ऐसे ही कम होता रहा तो राज्य को वन अच्छादित पर वित्त आयोग मिलने वाला अनुदान कम होता रहेगा। सभा में जनगीत गायक सतीश धौलाखंडी, एस एफ आई के राज्य सचिव हिमांशु चौहान एवं त्रिलोचन भट्ट जी द्वारा मानव श्रृंखला बनवाकर जनगीत "ये कैसी राजधानी है" गाया गया।
इस दौरान खलंगा के स्थानीय निवासी कर्नल थापा ने भ्रष्ट नेताओं और कॉर्पोरेट के गठजोड़ और उनके लालच को प्रकृति का दुश्मन बताया। भारतीय ज्ञान विज्ञान समिति के विजय भट्ट एवं इन्द्रेश नौटियाल द्वारा पर्यावरण आंदोलन को जल, जंगल व ज़मीन को बचाने की लड़ाई से जोड़ने का आवाहन किया गया। साथ ही कहा की सोंग नदी को बचाना खलांग वन को बचाने जितना जरूरी है और वर्तमान योजना के पश्चात सोंग भी रिस्पना बिंदाल के समान मृतप्राय हो जाएगी।