उत्तराखण्ड: हरियाली का प्रतीक कहा जाने वाला त्योहार हरेला उत्तराखण्ड राज्य के पारम्परिक त्योहारों में से एक है।
हरेला पर्व जो की उत्तराखण्ड की संस्कृति से जुड़ने के साथ साथ एक बहुत ही अच्छी पहल है प्रकृति को संरक्षित करने की। सावन का स्वागत करता हरेला पर्व उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार के दिन लोग कान के पीछे हरेले के तिनके को रखते है।
*क्या है हरेला त्योहार*
हरेला पर्व उत्तराखण्ड में सावन के आगमन का स्वागत करता है या यू कहे उत्तराखंड में सावन मास की शुरुआत हरेला पर्व से ही होती है। हरेला पर्व से 9 दिन पहले हर घर में मिट्टी या बांस की बनी टोकरी में हरेला बोया जाता है। टोकरी में एक परत मिट्टी की, दूसरी परत कोई भी सात अनाज जैसे गेहूं, सरसों, जौं, मक्का, मसूर, गहत, मास की बिछाई जाती है। दोनों की तीन-चार परत तैयार कर टोकरी को छाया में रख दिया जाता है। चौथे-पांचवें दिन इसकी गुड़ाई भी की जाती है। 9 दिन में इस टोकरी में अनाज की बाली जाती हैं। इसी को हरेला कहते हैं। माना जाता है कि जितनी ज्यादा बालियां, उतनी अच्छी फसल। 10वीं दिन हरेला को काटकर सबसे पहले घर के मंदिर में चढ़ाया जाता है।