हरिद्वार-: भगवान भोलेनाथ का सबसे पावन महीना सावन के महीने में देशभर से हज़ारो भक्त(खासतौर पर उत्तर भारत) भगवान भोलनाथ को जल चढ़ाने को उत्तराखंड आ रहे है,जिनके स्वागत को उत्तराखंड पुलिस प्रशासन सबसे प्रथम पग पर कांवड़ियों के स्वागत को चौतरफा आयोजन करे हुए है-जिसमे सुरक्षा, सहायता, मूलभूत सुविधा मुहैया करवाने से लेकर मानवता सहायता प्रमुख है। इस एक मास के कांवड़ आयोजन को सफलता पूर्वक सम्पन्न करवाने को ख़ाकी जितनी अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हुए कांवड़ यात्रा मार्ग, कांवड़ मेले में हर ओर, हर मोड़,हर बैरिकेड पर खड़े होकर जितनी प्रतिबद्घता दिखाये हुए है उस प्रतिबद्धता के इतर देखे तो कांवड़ आयोजन करवाना खाकी के लिए अपने ''ख़ाकी कर्तव्यों'' की श्रेणी में सबसे चुनौतीपूर्ण कार्यो में से एक है,जिसको निभाने को ख़ाकी को किन परिस्थितियों से जूझना पड़ता है वह शायद ही हम महसूस करते होंगे।
यूं तो कांवड़ मेला का आयोजन अपने मन मे श्रद्धा लिए दूर दराज से भगवान भोले को गंगाजल अर्पित करवाने वालो के लिए है जिनका तहे दिल से सम्मान है किंतु इस बात को भी नज़र अंदाज़ नही किया जा सकता कि कांवड़ियो के भेष में कई उपद्रवी तत्वों ने भी बीते कुछ वर्षों में अपनी उपस्थिति कांवड़ियों के रूप में दर्ज करवाई है जिससे चिंताजनक तरीके से कानून व्यवस्था को ताक पर रखने का कई उदाहरण सेट कर दिए है। कांवड़ मेले के आयोजन में कांवड़ियों की सहायता व सुरक्षा को पुलिस प्रशासन गंगा घाटों से लेकर मंदिर,सड़क,मुख्य मार्ग,बूथों, चौराहों,बैरिकेडिंग हर जगह मौजूद है जिसमे पुलिस प्रशासन कड़ी धूप, आफत की बारिश,आपदा जैसी स्थितियों में भी अडिग है। आंधी तूफान,उफनती नदियों में में चाहे खुद छाता लिए सड़को व नदी किनारों ड्यूटी करते हुए या बिन एक पानी की घूंट पिये कई कई घण्टो कांवड़ियों का मार्गदर्शन करते हुए खड़ा हुआ है,किन्तु कांवड़ियों को ख़ाकी की जरूरत हो और ख़ाकी न मिले ऐसा कभी नही हुआ। पुलिस अधिकारियों द्वारा इस दौरान कांवड़ियो के स्वागत सहित कानून व्यवस्था को प्राथमिकता देने की बात जरूर कही जाती रही है किंतु कई ऐसे दृश्य हर बार के कांवड़ यात्रा में सामने आए है जहां कांवड़ियों को कानून व्यवस्था का एक दो पाठ क्या पढ़ाया जाए,व्यवस्था में सहयोग की अपील की जाए तो वह पुलिस प्रशासन पर उग्र होते बन रहे है, हाथापाई व पथराव की नौबत तक आ जाती है, जिसमे कई पुलिस अधिकारी से लेकर कर्मी घायल तक हो जाते है, किन्तु पुलिस प्रशासन फिर भी 'अतिथि देवो भवः' लिए सदैव की तरफ अगले दिन फिर कांवड़ियों के स्वागत में लग जा रहा है। वहीं ऐसे वाक्य भी सामने आए है जहां पुलिस विभाग ने कांवड़ यात्रा के दौरान उपजे विवाद में सूझबूझ दिखाते हुए समाज के वर्गों के बीच समन्वयक बन कार्य कर सराहना भी बटोरी है,जो निश्चित ही ख़ाकी की धैर्यवान छवि में एक और उपलब्धि है।
धूप,छांव, तपती गर्मी, लगातार जोर-जोर से बजते गाड़ियों के हॉर्न के बीच पुलिस कर्मी फिर भी लगातार सक्रियता से अपना कर्तव्य निभाते चले जा रहे है, और आयोजन को अंतिम पड़ाव तक पहुँचाने को कड़ी तकलीफ़ व चुनौती में भी अडिग बने है। निश्चित ही पुलिस कर्मियों की इस अडिगता की सराहना है किन्तु जरूरत है कि सभी राज्यो के शासन स्तर से कांवड़ यात्रा के दौरान कानून व्यवस्था को ताक पर रखकर कांवड़ यात्रा करना व पुलिस कर्मियों का सहयोग न करने जैसे बिंदुओं पर चर्चा हो व एक निर्धारित गाइडलाइन्स बनाकर पुलिस प्रशासन को बड़ी राहत दे सके। किन्तु इस सबसे ऊपर कांवड़ यात्रा को हर बार सफल बनाने को निष्ठा दिखाती खाकी हर अंदाज़ में सराहनीय है। और अगर कहा जाए कि कांवड़ यात्रा खाकी की प्रतिबद्धता व धैर्यता की परीक्षा साबित होती है तो गलत नही होगा और यह कहना भी कदापि अतिश्योक्ति नही होगा कि ख़ाकी इस अग्नि परीक्षा मे उत्तीर्ण है।